Saturday, June 20, 2015

‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ पर पंकज चतुर्वेदी की एक कविता


आइए 

समलैंगिकता एक प्यार है
इंसान का इंसान से
ज़रूरी नहीं लैंगिकता का
ख़याल रखकर किया जाए

एक समाचार चैनल पर
समलैंगिकता पर बहस में
बाबा रामदेव ने कहा :
यह भारतीय संस्कृति के खि़लाफ़ है
अप्राकृतिक है
मानसिक विकृति है
और अगर सुप्रीम कोर्ट, सरकार और लोग
यह नहीं समझते
तो वे भी भारतीय संस्कृति के खि़लाफ़ हैं

समलैंगिकों के प्रवक्ता का कहना था
कि दुनिया के मशहूर मनोवैज्ञानिकों की राय है
कि समलैंगिक सम्बन्ध
दिमाग़ी ख़राबी नहीं
बल्कि इंसान की
ख़ास आंतरिक बनावट का नतीजा हैं

एक और समलैंगिक ने
एक पत्रिका में अपने इंटरव्यू में पूछा
कि खजुराहो, दहोद और मोधरा की मूर्तियों में
और हमारे प्राचीन ग्रंथ ‘कामसूत्र’ में
समलैंगिकता के रहे होने के सुबूत मिलते हैं
फिर कैसे इसे कुछ लोग
पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित परिघटना बताते हैं

बहरहाल, चैनल पर बाबा रामदेव ने
आगे कहा :
समलैंगिकता की व्याधि से
छुटकारे का उपाय है
प्राणायाम

समलैंगिकों के पैरवीकार ने
अपने तर्कों से
बाबा को मुत्मइन करने की
काफ़ी चेष्टा की
पर अंत में खीजकर कहा :
क्या प्राणायाम, प्राणायाम
प्राणायाम से कुछ नहीं होता है

मगर बाबा इस बात पर अड़े रहे
कि प्राणायाम से
सब ठीक हो सकता है

आइए रामदेव जी !
बावजूद इसके कि वे लोग प्राणायाम जानते हैं
प्राणायाम के राजपथ पर
भारतीय संस्कृति की
छतरी के नीचे
उन्हें धकियाते हुए चलें !
***
साभार : कवि के सद्यः प्रकाशित कविता-संग्रह ‘रक्तचाप और अन्य कविताएं’ से 

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